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कीटों से बचाव

सोयाबीन फसल की सुरक्षा के उपाय

सोयाबीन फसल की सुरक्षा के उपाय

दोस्तों आज हम बात करेंगे सोयाबीन की फसल की सुरक्षा के बारे में, सोयाबीन की फसल किसानों के लिए बहुत ही ज्यादा उपयोगी होती है। ऐसे में इस फसल की सुरक्षा करना बहुत ही जरूरी है। सोयाबीन की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग लग जाते हैं जिनके कारण फसल खराब होने का भय रहता है। जैसे सोयाबीन की फसल में कभी-कभी विनाशकारी सफेद मक्खी कीट का रोग लग जाता है, जिससे फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है। सोयाबीन की फसल को इस भयंकर कीटों से बचाव करने के लिए हमें विभिन्न प्रकार के तरीके अपनाने चाहिए। सोयाबीन की फसल से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे।

सोयाबीन के फसल की खेती वाले राज्य :

सोयाबीन की खेती, किसान खरीफ के मौसम में करते हैं। खरीफ का मौसम सोयाबीन की खेती करने के लिए सबसे उत्तम होता है। बहुत से क्षेत्र हैं जहां सोयाबीन की खेती की जाती है। जैसे भारत में सोयाबीन की खेती महाराष्ट्र, राजस्थान मध्य प्रदेश में भारी मात्रा में उत्पादन की जाती है। यदि हम बात करें इनकी पैदावार की तो मध्यप्रदेश लगभग 45% का उत्पादन करती है। वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में यह लगभग 40% का भारी उत्पादन करती हैं। इसके अलावा और भी क्षेत्र हैं जहां सोयाबीन की खेती की जाती है। जैसे  बिहार आदि क्षेत्र सोयाबीन की खेती के लिए प्रमुख माने जाते हैं।


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सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चुनाव:

किसानों के अनुसार सोयाबीन की फसल किसी भी भूमि पर आप आसानी से कर सकते हैं। परंतु  हल्की और रेतीली भूमि में सोयाबीन की खेती करना उपयुक्त नहीं होता है। सोयाबीन की फसल दोमट चिकनी मिट्टी में सबसे उत्तम होती है इन भूमि पर सोयाबीन की अधिक पैदावार होती है।

सोयाबीन की फसल में लगने वाले रोग:

सोयाबीन की फसल में सफेद मक्खी कीट तेजी से लग जाते हैं, यदि इनकी रोकथाम सही समय पर ना की जाए तो यह फसल को पूरी तरह से खराब कर देते हैं। बारिश के दिनों में सोयाबीन में पीला मोजेक रोग तथा सेमिलूपर कीट रोग का प्रभाव बन जाता है। यह रोग बारिश के मौसम में नमी के कारण पनपते हैं, ऐसे में यदि जल निकास की व्यवस्था को ठीक ढंग से न बनाया जाए, तो यह रोग पूरी फसल को तहस-नहस कर देते हैं।

सोयाबीन की फसल में सफेद मक्खी रोग के प्रभाव:

वैसे तो आकार में यह मक्खियां बहुत ही छोटी होती है। पर इनके आकार को देखकर आप इनकी शक्ति का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि यह किस प्रकार से पूरी फसल को बर्बाद करती है। यह लगभग 8 मिमी की होती है, परंतु इनके कुप्रभाव से पूरी फसल बर्बाद हो जाती है, जिससे किसानों को बहुत हानि पहुंचती है। इन मक्खियों के शरीर तथा परो पर मोमी स्राव मौजूद होता है। यह सफेद मक्खियां खेतों के निचली सतह पर स्थित होती हैं और जब कभी आप खेतों को हिलाते डुलाते हैं तो यह उड़कर मंडराना शुरु कर देती हैं। ज्यादातर यह सफेद मक्खियां सूखी व गर्म स्थानों पर पनपती है।


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यह मक्खियां खेतों की निचली सतह पर रहकर अंडे भी उत्पादन करती है। यह सफेद नवजात शिशुओं को पैदा करती है जो दिखने में सफेद तथा अंडकार और हरे पीले होते हैं। इन सफेद मक्खियों की उत्पादकता को कम करने के लिए खेतों से घासफूस हटाना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है, जिससे इन मक्खियों की आबादी को नियंत्रित किया जा सकता हैं। सोयाबीन की फसल में कुछ इस प्रकार से सफेद मक्खी रोग के कुप्रभाव पढ़ते हैं।

सोयाबीन की फसल को सफेद मक्खियों तथा कीट से बचाने के उपाय :

  • किसान सफेद मक्खियों के इस प्रकोप को नियंत्रण रखने के लिए सोयाबीन की रोगरोधी किस्म का इस्तेमाल करता है जो सफेद मक्खियों को अपनी ओर बढ़ने से रोकती है।
  • या सफेद मक्खियां नमी के कारण और ज्यादा पनपती हैं ऐसे में बारिश के दिनों में खेतों में जल निकास की व्यवस्था को सही ढंग से बनाए रखना चाहिए।
  • सोयाबीन की बुवाई सही समय पर करनी चाहिए। किसानों के अनुसार इसकी बुवाई ना बहुत देर में ना ही जल्दी, दोनों ही प्रकार से नहीं करनी चाहिए, उचित समय पर सोयाबीन की बुवाई करें।
  • उर्वरीकरण तथा पौधों में संतुलिता को बनाए रखने की कोशिश करें।
  • फसल की कटाई के बाद सभी प्रकार के पौधों के अवशेषों को जड़ से हटा दें। खरपतवार का खास ध्यान रखें।
  • फसल को सुरक्षित रखने के लिए कृषि विशेषज्ञों के अनुसार रासायनिक दवाओं का भी इस्तेमाल खेतों में करें।


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दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल सोयाबीन फसल की सुरक्षा के उपाय पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में सोयाबीन की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद है जिससे आप लाभ उठा सकते हैं। यदि आप हमारी दी हुई जानकारियों से संतुष्ट हैं तो आप हमारे इस आर्टिकल को ज़्यादा से ज़्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद ।
अकेले कीटों पर ध्यान देने से नहीं बनेगी बात, साथ में करना होगा ये काम: एग्री एडवाइजरी

अकेले कीटों पर ध्यान देने से नहीं बनेगी बात, साथ में करना होगा ये काम: एग्री एडवाइजरी

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रीसर्च (ICAR) के अनुसार, सोयाबीन, मक्का व हरी सब्जियों की खेती करने वाले किसानों को खरपतवार नियंत्रण के प्रति जागरुक होने की आवश्यकता है। दरअसल, खरीफ फसल की बुवाई के लिए सही वक्त पर, सही बीज का, सही तरीके से‌ इस्तेमाल करना आवश्यक होता है। वैसे धान और खरीफ के फसल की‌ बुवाई करीब-करीब आस-पास ही होती है।

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हरे भरे खेतों में छोटे छोटे पौधों का तीव्र गति से पुष्पित पल्लवित होना किसान भाईयों के हृदय में एक नयी उर्जा का संचार करता है। लहलहाते पौधों को देख कर खुशी से उनका मन मयूर नाच उठता है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रीसर्च ने कृषकों के हित में एक एग्रो एडवाइजरी बोर्ड (Agro Advisory Board) का गठन किया है। एडवाइजरी बोर्ड का कहना है कि धान व खरीफ की फसलों के दौरान एक ऐसी स्थिति आती है, जब धान व खरीफ के पौधों में पत्ता मरोंड या फिर तना छेदक कीटें अपनी जड़ें जमा लेती हैं। तना छेदक कीटों से बचाव के लिए किसान को एडवाइजरी बोर्ड द्वारा जारी की गयी दवाइयों का बढ़-चढ़ कर इस्तेमाल करना चाहिए। किसानों को पौधों के‌ निचले भागों में जाकर समय समय पर निरीक्षण करते रहना चाहिए। कीटाणु पौधों के निचले हिस्से ही में अक्सर अपनी जड़ें जमाए बैठे रहते हैं। कीटाणु नाशक दवाइयों का छिड़काव भी समय-समय पर करते रहना चाहिए। सोयाबीन व सब्जियों ‌वाले किसानों को खरपतवार नियंत्रण के दौरान निराई व गुड़ाई‌ की सख्त आवश्यकता है। देशी खाद व फास्फोरस नामक उर्वरक के प्रयोग की भी हिदायतें दी गयी हैं। सब्जियों की खेती करने वाले किसानों, बेशुमार फल देने वाले‌ पौधों व शीर्ष छेदक कीटों से पौधों की सुरक्षा का निर्देश भी दिया गया है।

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फूल गोभी व पत्ता गोभी में फिरोमोन प्रपंच का छिड़काव जारी‌ करने का आदेश दिया गया है। बैगन, टमाटर, हरी मिर्च, फूल गोभी व पत्ता गोभी के पौधों को मिट्टी के मेड़ों पर बोवाई करने की सलाह दी गयी है। कृषक एडवाइजरी बोर्ड के अनुसार किसानों को किसी भी प्रकार के बीज व खाद की खरीददारी किसी प्रमाणित स्रोत से ही करनी चाहिए। हरे भरे मौसमी सब्जियों की बुवाई को तथाकथित ऊंची मेड़ों पर करने से फसल बेहतर होती हैं। किंतु, यहाँ पर ध्यान देने की आवश्यकता यह है कि फसल कितनी भी अच्छी क्यों ना हो, अगर‌ प्रत्येक दो तीन दिन के अंतराल में खरपतवार व साफ सफाई का ध्यान नहीं रखा जाए तो उसमें कीटें प्रवेश करने से बाज नहीं आते हैं। सारे किये कराए पर तब पानी फिर जाता है। इसलिए समय समय पर खरपतवार को बारीकी से निकाल कर पौधों को स्वच्छता पूर्वक सामान्य ढंग से पनपने के लिए छोड़ना होगा।

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इस प्रकार मात्र थोड़ी सी सावधानी बरतने से किसान भाइयों की मेहनत अवश्य रंग लाएगी। मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है।